काव्य पल्लव

जीवन के आपाधापी से कुछ समय निकाल कर कल्पना के मुक्त आकाश में विचरण करते हुए कुछ क्षण समर्पित काव्य संसार को। यहाँ पढें प्रसिद्ध हिन्दी काव्य रचनाऐं एवं साथ में हम नव रचनाकारों का कुछ टूटा-फूटा प्रयास भी।
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Friday, 13 April 2012

रंग

- कुन्दन कुमार मल्लिक

रंग
जो दिखाते हैं
जीवन के कई रुप
कहीं स्याह तो कहीं सफेद
जो स्पष्ट नजर आते हैं
लेकिन उन रंगों का क्या
जो धूसर हैं
इन रंगों से एकदम परे
जिनके होने के कई मायने हैं
जो दिगभ्रमित करते हैं
कल की ही तो बात है
वो एक अधेड़ सा चेहरा
जो अचानक सा सामने आ गया
बस से उतरते ही
कहने लगा
बाबूजी दो रुपये दे दो
उसे अनसुना कर
पाँच रुपये की पान गालों में दबा
आगे निकल गया
कुछ दूर बाद
फिर वही चेहरा दिखा
चलने में अशक्त
कुछ बेजार सा
शायद उसके पास
कम पड़ गये होंगे
ऑटो के लिए दो रुपये

मैं खड़ा सोचता रहा
ये वही धूसर रंग थे
जो मुझे दिगभ्रमित कर गए ।

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